Tuesday, May 24, 2016

ये हैं सोहनलाल. श्रीनगर बदरीनाथ नेशनल हाई वे पर PWD के श्रमिक. १० माह से वेतन नहीं मिला है. पर रोज़ सुबह आठ बजे अपने गाँव देवलगढ़ से ६ किलोमीटर चल कर चमेठाखाल पर हाज़िर हो जाते हैं. ये सड़क केदारनाथ और बदरीनाथ तक जाती है. चारधाम यात्री इस रास्ते को इस्तेमाल करते हैं पुण्य कमाने के लिय.

मद्महेश्वर यात्रा....
Kamal Joshi
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ये हैं सोहनलाल. श्रीनगर बदरीनाथ नेशनल हाई वे पर PWD के श्रमिक. १० माह से वेतन नहीं मिला है. पर रोज़ सुबह आठ बजे अपने गाँव देवलगढ़ से ६ किलोमीटर चल कर चमेठाखाल पर हाज़िर हो जाते हैं. ये सड़क केदारनाथ और बदरीनाथ तक जाती है. चारधाम यात्री इस रास्ते को इस्तेमाल करते हैं पुण्य कमाने के लिय.
चारधाम यात्रा सड़क को दुरुस्त रखने वाले सोहनलाल से मैंने पूछा – "क्या बदरीनाथ या केदारनाथ गए..!"
"अरे साब, कभी इतने पैसे ही नहीं हुए की वहाँ जाने की सोच पाऊँ. हमने तो नरक में जाना है जो इतने नजदीक होने के बावजूद बद्रीनाथ जी के दर्शन करने नही गए," उदास आवाज में सोहन लाल बोला.
यहीं पर एक बटवृक्ष है, विशाल. पड़ोस का एक परिवार ने यहाँ एक घडा और मग्गा रखा है जिससे थके पैदल यात्री अगर पेड़ के नीचे बैठे तो अपनी प्यास भी बुझा लें. घंटी बजाकर पूजा करने से बेहतर उस परिवार की यह पूजा लगी. पर अब सोहन लाल और इस घड़े का एक मजबूरी का रिश्ता हो गया है.
मद्महेश्वर यात्रा के दौरान फोटो खींचने के लिए रूका तो सोहन लाल से परिचय होना ही था. अपना परिचय भी दिया. तब ही सोहनलाल ने बताया की सड़क तो रोज़ ठीक कर रहा पर दस माह से वेतन नहीं मिला.
मैंने सोहन लाल से ऐसे ही पूछा की दस माह से वेतन नहीं मिला, तब भी आप क्यों रोज़ रोज़ सड़क पर फावड़ा लेकर आ जाते हो. एक आध दिन आराम क्यों नहीं कर लेते. (मैं तो ऐसे लोगों को जानता हूँ जो ऊंची ऊंची तनखा लेते हैं और सातवें वेतनमान पर काम छोड़कर बहस करते हैं, पर जिस काम का वेतन लेते हैं वहाँ समय पर नहीं जाते और जल्दी छुट्टी भी करते हैं) इस कलियुग में सोहनलाल जैसे का नित्य काम पर आना अच्छा तो लगा पर समय को देखते ही अजीब भी.
अब सोहन लाल का जवाब सुनिये.
"कभी तो मिलेगी तनखा,साब! पर रोज़ आना ज़रुरी है. बात या च की .... की ये घडा एक डेढ़ घंटे में खाली हो जाता है. जिन्होंने रखा है वो उनके पास दुबारा भरने का समय नहीं है. अब थका हुआ पैदल यात्री यहाँ आयेगा और खाली घडा देख कर उसके दिल पर क्या बीतेगी..! इस लिए मैं हर दो घंटे में नदी से पानी लाकर इसे भर देता हूँ. यात्री प्यास बुझा लेते है. इस लिए आना ज़रूरी है.
मैं हतप्रभ था.
मैंने सोहनलाल के कंधे पर हाथ रखा और कहा " सोहन भाई , तुम तो उन लोगों से ज्यादा पुण्य कमा रहे हो जो चारधाम यात्रा करने आते हैं. तुम सच्चे मन से थके यात्रियों की सेवा कर रहे और उनकी प्यास बुझा रहे. ज्यादातर चारधाम यात्री तो मन में पाप का बोझ लेकर आते हैं कि भगवान् के दर्शन से उनके पाप दूर होंगे. तुम तो स्वयं साक्षात् भगवान् हो." मैने झुक कर सोहनलाल के पैर छू लिए."
सोहनलाल चौंक करे पीछे हटा और बोला "भेजी, मेरे पर छूकर मुझे पापी मत बनाओ, आप बामण होकर मेरे पैर छू रहे हैं."
मैंने सोहन के दोनों हाथ पकड़ कर कहा." नाम के आगे जोशी लिखने से कोई ब्राह्मण नहीं हो जाता सोहन लाल, मैं तो कोई ऐसा कोई काम नहीं करता की ब्राह्मण कहलाऊँ. तुम लोगों की प्यास बुझा रहे हो, रास्ता दिखा रहे हो. असली ब्राह्मण तो तुम हो".
मुझे तो वो भगवान ही लग रहा था.
(कहानी लम्बी है , फिर लिखूंगा)

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