Wednesday, May 25, 2016

Reyazul Haque की वाल से जिसका इतने दिनों से इंतज़ार था. Desh जी ने अपना संपादकीय एम्मानुएल ओर्तिस की जिस कविता के साथ बुना है, उसे ठीक आज के भारत के केंद्र में रखकर पढ़ते हुए लगता है कि हमारा समाज असल में त्रासदियों से होड़ लगा रहा है. जिस ख़ौफ़नाक हक़ीक़त से हमें आँखें मूँद लेना सिखाया जाता रहा है, उससे मुठभेड़ करता अंक. और किसी बौखलाहट के बग़ैर, एक सधे हुए तरीक़े से. Rajkumar और Satya भाई, ऐसी ग़ज़ब की कहानियों के लिए शुक्रिया. हम इन्हें याद रखेंगे. और इस अंक को प्रियंका की पहाड़ी जीवन और जगहों की तस्वीरों के लिए भी याद रखा जाएगा.



Reyazul Haque की वाल से
जिसका इतने दिनों से इंतज़ार था.
Desh जी ने अपना संपादकीय एम्मानुएल ओर्तिस की जिस कविता के साथ बुना है, उसे ठीक आज के भारत के केंद्र में रखकर पढ़ते हुए लगता है कि हमारा समाज असल में त्रासदियों से होड़ लगा रहा है. जिस ख़ौफ़नाक हक़ीक़त से हमें आँखें मूँद लेना सिखाया जाता रहा है, उससे मुठभेड़ करता अंक. और किसी बौखलाहट के बग़ैर, एक सधे हुए तरीक़े से.
Rajkumar और Satya भाई, ऐसी ग़ज़ब की कहानियों के लिए शुक्रिया. हम इन्हें याद रखेंगे. और इस अंक को प्रियंका की पहाड़ी जीवन और जगहों की तस्वीरों के लिए भी याद रखा जाएगा.

No comments:

Post a Comment