Monday, May 9, 2016

मेहनतकश मई-जून, 2016

Mukul
सलाम 
साथी मेहनतकश का नया अंक भेज रहा हूँ। 
आपकी प्रतिक्रया पत्रिका को और बेहतर बना सकती हैं। 
साभिवादन 

Palash Biswas palashbiswaskl@gmail.com

7:35 PM (18 minutes ago)
to mehnatkash2015AmalenduAmalenduAnandMangaleshvarmadaPankajMukul
इस पत्रिका को देखकर बहुत खुशी हो रही है।1980 में तब कामरेड माहेश्वर जीवित थे और अपने कवि मित्र मदनकश्यप हमारे साथ धनबाद में थे।संजीव कुल्टी में।तब श्रमिक सालिडारेटी का प्रकाशन श्रमिकों के हक हकूक और श्रमिक आंदोलन को केंद्र्ित करके निकला था।वह एक अनूठा प्रयोग था।बोकारो.जमशेदपुर,राउरकेला ,धनबाद,आसनसोल जैसे केंद्रों पर फोकस करके अंक निकाले जाते थे और उस इलाके के श्रमजीवियों की लड़ाई का सिलसिलेवार ब्योरा होता था।औद्योगिक इकाइयों के रोजमर्रे की जिंदगी का बहुआयामी प्रकाशन का सिलसिला था वह।इसमें खास बात थी कि संबंधित इलाकों के साथियों को ही उस इलाके पर केंद्रित अंक का सारा खर्च निकालना होता था।
बिहार नवजनवादी सांस्कृतिक मोर्चा का यह आयोजन था।जिसके अध्यक्ष शायद उस वक्त विजेंद्र अनिल थे।मेरे क्याल से आप भी शायद बिहार नवजनवादी सांस्कृतिक मोर्चे में थे,अगर मेरी याददाश्त धोखा नहीं दे रही है।अगर थे तो आप इस प्रयोग के बारे में जानते ही होंगे।
मेरा सुझाव यह है कि अवधारणाओं और विचारों को नजरअंदाज न किया जाये और वैचारिक सामग्री भी खूब दें लेकिन जमीनी जनसंघर्षों के अलावा उत्पादन इकाइयों के मौजूदा हाल का बहुआयामी ब्यौरा भी दें,जिसके बारे में फिलहाल सूचना शून्य है।
बातर्ज शर्मिक शालिजडेरिटी क्षेत्रवार फोकस के जरिये आप पत्रिका को सिलसिलेवार निकाल सकते हैं।कामरेड माहेश्वर के असामयिक निधन के बाद अनेक कारण रहे हैं,जिनकी वजह से श्रमिक सालिडेरिटी बंद हो गया।लेकिन उस प्रयोग को अगर आप आजमा सकें दोबारा तो मुझे खुसी होगी।आप जुझारु साथी रहे हैं,तो यह सुझाव जेने की जुर्रत कर रहा हूं।अन्यथा न लें।
पलास विश्वास 

No comments:

Post a Comment