Sunday, May 22, 2016

Arvind K Singh अजमेर के हाथीपुरा गांव की इन महिलाओं को लू और तपन के बीच दो किमी दूर से पैदल पानी लाना पड़ता है। सड़क है नहीं। पानी लाते थक कर हांफ जाती है। राह में न पेड़ है न छांव। इनकी दशा एक दो साल से नहीं सात साल से है। एक महिला ने मुझे वहां के एक नल का पानी लाकर दिया। तेजाबी पानी था,,एकदम खारा लगा जैसे नमक पी लिया। ये पानी जानवर भी नहीं पीते। नलों पर लाल निशान लगे हैं। काफी दिन से लिखापढ़ी हो रही है लेकिन पानी नहीं आया। पारा चढ़ने के साथ रेड एलर्ट घोषित है। लेकिन पानी तो चाहिए ही..प्राण की कीमत पर। इनसे बातचीत कर आज मन बहुत उदास हुआ। आजादी के इतने सालों बाद ऐसी तस्वीरें क्यों दिखती हैं.

Arvind K Singh
अजमेर के हाथीपुरा गांव की इन महिलाओं को लू और तपन के बीच दो किमी दूर से पैदल पानी लाना पड़ता है। सड़क है नहीं। पानी लाते थक कर हांफ जाती है। राह में न पेड़ है न छांव। इनकी दशा एक दो साल से नहीं सात साल से है। एक महिला ने मुझे वहां के एक नल का पानी लाकर दिया। तेजाबी पानी था,,एकदम खारा लगा जैसे नमक पी लिया। ये पानी जानवर भी नहीं पीते। नलों पर लाल निशान लगे हैं। काफी दिन से लिखापढ़ी हो रही है लेकिन पानी नहीं आया। पारा चढ़ने के साथ रेड एलर्ट घोषित है। लेकिन पानी तो चाहिए ही..प्राण की कीमत पर। इनसे बातचीत कर आज मन बहुत उदास हुआ। आजादी के इतने सालों बाद ऐसी तस्वीरें क्यों दिखती हैं.

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