ये डिग्री विग्री क्या है....
लोकनाथ तिवारी
आप भले ही तीस मार खां हों लेकिन आपके पास सरकारी नौकरी नहीं है तो आप कम से कम अपने यूपी बिहार में तो फिसड्डी ही हैं। एक अदद सरकारी चाकरी हासिल कर लें फिर तो आपके गहकी (ग्राहक) जिला जवार में आपके बारे में चर्चा करते दिखेंगे। आप कहेंगे कि यह कौन सी नयी बात है। यह तो यूपी बिहार का हर जवान जहान बेटे बेटियों के माता-पिता जानते हैं। मैं भी ऐसी ओल्ड फैशन्ड और बोरिंग टॉपिक श्ाुरू नहीं करना चाहता। अभी हाल ही में अपने परिधान (सुधार कर पढ़ें) मंत्री की डिग्री को लेकर जो सवाल उठाया गया, उसने इस टॉपिक को छेड़ने पर मजब्ाूर कर दिया।
केंद्रीय सूचना आयोग ने दिल्ली विश्वविद्यालय और गुजरात विश्वविद्यालय को सख्त आदेश दिया है कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बीए-एमए की डिग्री से जुड़ी सारी सूचनाएं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जल्द से जल्द उपलब्ध कराएं। सीआईसी ने पीएम कार्यालय से भी कहा है कि दोनों विश्वविद्यालयों को मोदी के रोल नंबर समेत सभी जरूरी जानकारियां मुहैया कराई जाएं, ताकि उनकी डिग्री से जुड़ी सूचनाएं आसानी से निकाली जा सकें। एकबारगी कोई सोच सकता है कि प्रधानमंत्री की डिग्री से जुड़ी जानकारियां देश के सार्वजनिक हित के लिए भला किस रूप में जरूरी हो सकती हैं? हरियाणा और गुजरात के हालिया आदेशों को छोड़ दें (जहां पंचायत चुनावों के प्रत्याशियों के लिए एक न्यूनतम शैक्षिक योग्यता को अनिवार्य बना दिया गया है) तो आज भी पूरे देश में चुनाव लड़ने और जीतने के लिए किसी डिग्री की जरूरत नहीं है। लेकिन पिछले कुछ समय से अलग-अलग वजहों से भारत में राजनेताओं की डिग्रियां मुद्दा बनने लगी हैं। अगर आप फर्जी डिग्री के मुद्दे पर दिल्ली के एक मंत्री को गिरफ्तार करके जेल भेज देते हैं तो किसी अन्य राज्य या केंद्र में किसी अन्य मंत्री, यहां तक कि प्रधानमंत्री की डिग्री को लेकर उठ रहे सवालों की अनदेखी भला कैसे सकते हैं? दूसरी बात यह कि मामला चाहे केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी का हो या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का, दोनों ही मामलों में सवाल सिर्फ डिग्री का नहीं, सरकारी तौर पर दाखिल हलफनामे में गलत जानकारी देने का भी हो सकता है। यह सही है कि किसी मंत्री की योग्यता का पैमाना उसकी डिग्री को नहीं बनाया जा सकता, लेकिन किसी को शपथ लेकर झूठ बोलने की आजादी हमारा कानून नहीं देता। अतीत में नरेंद्र मोदी पर अपनी शादी को लेकर अलग-अलग समय में अलग-अलग जानकारी देने, यहां तक कि जानकारी छिपाने के भी आरोप लग चुके हैं और इन आरोपों पर संतोषजनक स्पष्टीकरण अभी तक नहीं आ सका है, इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि उनकी डिग्री को लेकर बनी धुंध तुरंत साफ की जाए।
ये बात दीगर है कि इस तकनीकी दुनिया में भले ही आइआइटियंस को सेठ जी के अनुभव के सामने पानी भरते देखा जाता हो लेकिन कौन कितना योग्य हैं इसका मापदंड उसकी डिग्री से आंकना लोग नहीं छोड़ते। अपने चारों ओर जो देख समझ रहे हैं, उस पर अनायास ही विश्वास करने को जी नहीं चाहता। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यही है कि हमारे माता-पिता बचपन से ही हमें कक्षा में अच्छे नंबरों से पास होने के लिए दबाव डालते आये हैं। अब देखिये ना लोग प्रधानमंत्री तक से उनकी डिग्री दिखाने की मांग कर रहे हैं। उन्हें शक है कि पीएम के पास डिग्री है ही नहीं। डिग्रियों को लेकर हमारी मानसिकता हड़प्पा मोहनजोदड़ो काल से ही ऐसी है। भले ही किसी में प्रधानमंत्री बनने की काबिलियत क्यों न हो, दुनिया को तब तक चैन नहीं पड़ेगा जब तक वो वे उसकी डिग्री न जांच लें। यह न जान लें कि उसने अंग्रेजी में डिस्टिंक्शन हासिल किया था कि नहीं। अब देखिये ना अपने काबिल प्रधानमंत्री का लोहा दुनिया मानती है। अपने ब्ाूते भाजपा की सरकार बना डाली। तीन बार ग्ाुजरात के मुख्यमंत्री रहे। यहां तक कि दुनिया के ताकतवर लोगों की सूची में भी उनका नाम बहुत आगे है। फिर भी उनकी डिग्री देखे बिना किसी को चैन नहीं मिलनेवाला।
हां तो बात बिहार-यूपी की हो रही थी। वहां तो बचपन से डॉक्टर और इंजीनियर को ही काबिलों की सूची में अग्रणी मानते देखते सुनते हम बड़े हुए हैं। अब उसमें आईएएस, आईपीएस, एमबीए जैसी डिग्रियां श्ाुमार हो गयी हैं। अब तो हर दर्जे की सरकारी नौकरी को भी सफलता की निशानी माना जाने लगा है। बच्चा अपने हुनर से भले ही कामयाब हो जाये लेकिन लोगों की निगाह में वह हेय दृष्टि का पात्र ही बना रहता है। स्मृति इरानी भले ही शिक्षा मंत्री बन कर पीएचडी डिग्री धारी वैज्ञानिकों पर हुक्म चलाने लगी हों, लेकिन कहीं न कहीं उनके दिलो दिमाग में भी डिग्री की टीस जरूर उठती होगी। तेजस्वी यादव भले ही बिहार जैसे राज्य के उपमुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हो जाये, अपनी बिरादरी के लोग उसकी डिग्री को लेकर उपहास करना नहीं छोड़ेंगे। सचिन तेंदुलकर की चर्चा करते समय भी हम उनकी डिग्रियों की चर्चा कर कहीं न कहीं उनको हेय करने की कोशिश जरूर करते हैं। हम भ्ाूल जाते हैं कि आदिकाल से ही लोगों की डिग्री के बजाय उनकी कार्य कुशलता व क्षमता को देखा जाता रहा है। राजाओं की डिग्री नहीं देखी जाती थी। गांव में डबल एमए व डॉक्टरेट डिग्री धारी लोगों को गांव की चट्टी पर चरते देखा जा सकता है। फेसबुक और ऐपल बनानेवाले मार्क जकरबर्ग और स्टीव जॉब्स के पास डिग्रियां नहीं हैं। क्या हम केवल डिग्रियों के मानदंड पर उनको इग्नोर कर सकते हैं। डिग्रियों के प्रति मोह से ही हमारे देश में फर्जी डिग्री का कारोबार भी फल फूल रहा है। ट्यूटोरियल क्लासेस की भरमार, कोटा, इलाहाबाद सहित लगभग हर छोटे बड़े शहरों में डिग्री दिलाने की दुकानें करोड़ों का व्यवसाय कर रही हैं। ऐसे ही लोग डिग्रियों की मांग करते रहे तो हो सकता है अपने मोदी जी को कहीं इवनिंग क्लासेज जॉइन करके ग्रेजुएशन की डिग्री पूरी करनी पड़ जाये।
लोकनाथ तिवारी
आप भले ही तीस मार खां हों लेकिन आपके पास सरकारी नौकरी नहीं है तो आप कम से कम अपने यूपी बिहार में तो फिसड्डी ही हैं। एक अदद सरकारी चाकरी हासिल कर लें फिर तो आपके गहकी (ग्राहक) जिला जवार में आपके बारे में चर्चा करते दिखेंगे। आप कहेंगे कि यह कौन सी नयी बात है। यह तो यूपी बिहार का हर जवान जहान बेटे बेटियों के माता-पिता जानते हैं। मैं भी ऐसी ओल्ड फैशन्ड और बोरिंग टॉपिक श्ाुरू नहीं करना चाहता। अभी हाल ही में अपने परिधान (सुधार कर पढ़ें) मंत्री की डिग्री को लेकर जो सवाल उठाया गया, उसने इस टॉपिक को छेड़ने पर मजब्ाूर कर दिया।
केंद्रीय सूचना आयोग ने दिल्ली विश्वविद्यालय और गुजरात विश्वविद्यालय को सख्त आदेश दिया है कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बीए-एमए की डिग्री से जुड़ी सारी सूचनाएं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जल्द से जल्द उपलब्ध कराएं। सीआईसी ने पीएम कार्यालय से भी कहा है कि दोनों विश्वविद्यालयों को मोदी के रोल नंबर समेत सभी जरूरी जानकारियां मुहैया कराई जाएं, ताकि उनकी डिग्री से जुड़ी सूचनाएं आसानी से निकाली जा सकें। एकबारगी कोई सोच सकता है कि प्रधानमंत्री की डिग्री से जुड़ी जानकारियां देश के सार्वजनिक हित के लिए भला किस रूप में जरूरी हो सकती हैं? हरियाणा और गुजरात के हालिया आदेशों को छोड़ दें (जहां पंचायत चुनावों के प्रत्याशियों के लिए एक न्यूनतम शैक्षिक योग्यता को अनिवार्य बना दिया गया है) तो आज भी पूरे देश में चुनाव लड़ने और जीतने के लिए किसी डिग्री की जरूरत नहीं है। लेकिन पिछले कुछ समय से अलग-अलग वजहों से भारत में राजनेताओं की डिग्रियां मुद्दा बनने लगी हैं। अगर आप फर्जी डिग्री के मुद्दे पर दिल्ली के एक मंत्री को गिरफ्तार करके जेल भेज देते हैं तो किसी अन्य राज्य या केंद्र में किसी अन्य मंत्री, यहां तक कि प्रधानमंत्री की डिग्री को लेकर उठ रहे सवालों की अनदेखी भला कैसे सकते हैं? दूसरी बात यह कि मामला चाहे केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी का हो या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का, दोनों ही मामलों में सवाल सिर्फ डिग्री का नहीं, सरकारी तौर पर दाखिल हलफनामे में गलत जानकारी देने का भी हो सकता है। यह सही है कि किसी मंत्री की योग्यता का पैमाना उसकी डिग्री को नहीं बनाया जा सकता, लेकिन किसी को शपथ लेकर झूठ बोलने की आजादी हमारा कानून नहीं देता। अतीत में नरेंद्र मोदी पर अपनी शादी को लेकर अलग-अलग समय में अलग-अलग जानकारी देने, यहां तक कि जानकारी छिपाने के भी आरोप लग चुके हैं और इन आरोपों पर संतोषजनक स्पष्टीकरण अभी तक नहीं आ सका है, इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि उनकी डिग्री को लेकर बनी धुंध तुरंत साफ की जाए।
ये बात दीगर है कि इस तकनीकी दुनिया में भले ही आइआइटियंस को सेठ जी के अनुभव के सामने पानी भरते देखा जाता हो लेकिन कौन कितना योग्य हैं इसका मापदंड उसकी डिग्री से आंकना लोग नहीं छोड़ते। अपने चारों ओर जो देख समझ रहे हैं, उस पर अनायास ही विश्वास करने को जी नहीं चाहता। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यही है कि हमारे माता-पिता बचपन से ही हमें कक्षा में अच्छे नंबरों से पास होने के लिए दबाव डालते आये हैं। अब देखिये ना लोग प्रधानमंत्री तक से उनकी डिग्री दिखाने की मांग कर रहे हैं। उन्हें शक है कि पीएम के पास डिग्री है ही नहीं। डिग्रियों को लेकर हमारी मानसिकता हड़प्पा मोहनजोदड़ो काल से ही ऐसी है। भले ही किसी में प्रधानमंत्री बनने की काबिलियत क्यों न हो, दुनिया को तब तक चैन नहीं पड़ेगा जब तक वो वे उसकी डिग्री न जांच लें। यह न जान लें कि उसने अंग्रेजी में डिस्टिंक्शन हासिल किया था कि नहीं। अब देखिये ना अपने काबिल प्रधानमंत्री का लोहा दुनिया मानती है। अपने ब्ाूते भाजपा की सरकार बना डाली। तीन बार ग्ाुजरात के मुख्यमंत्री रहे। यहां तक कि दुनिया के ताकतवर लोगों की सूची में भी उनका नाम बहुत आगे है। फिर भी उनकी डिग्री देखे बिना किसी को चैन नहीं मिलनेवाला।
हां तो बात बिहार-यूपी की हो रही थी। वहां तो बचपन से डॉक्टर और इंजीनियर को ही काबिलों की सूची में अग्रणी मानते देखते सुनते हम बड़े हुए हैं। अब उसमें आईएएस, आईपीएस, एमबीए जैसी डिग्रियां श्ाुमार हो गयी हैं। अब तो हर दर्जे की सरकारी नौकरी को भी सफलता की निशानी माना जाने लगा है। बच्चा अपने हुनर से भले ही कामयाब हो जाये लेकिन लोगों की निगाह में वह हेय दृष्टि का पात्र ही बना रहता है। स्मृति इरानी भले ही शिक्षा मंत्री बन कर पीएचडी डिग्री धारी वैज्ञानिकों पर हुक्म चलाने लगी हों, लेकिन कहीं न कहीं उनके दिलो दिमाग में भी डिग्री की टीस जरूर उठती होगी। तेजस्वी यादव भले ही बिहार जैसे राज्य के उपमुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हो जाये, अपनी बिरादरी के लोग उसकी डिग्री को लेकर उपहास करना नहीं छोड़ेंगे। सचिन तेंदुलकर की चर्चा करते समय भी हम उनकी डिग्रियों की चर्चा कर कहीं न कहीं उनको हेय करने की कोशिश जरूर करते हैं। हम भ्ाूल जाते हैं कि आदिकाल से ही लोगों की डिग्री के बजाय उनकी कार्य कुशलता व क्षमता को देखा जाता रहा है। राजाओं की डिग्री नहीं देखी जाती थी। गांव में डबल एमए व डॉक्टरेट डिग्री धारी लोगों को गांव की चट्टी पर चरते देखा जा सकता है। फेसबुक और ऐपल बनानेवाले मार्क जकरबर्ग और स्टीव जॉब्स के पास डिग्रियां नहीं हैं। क्या हम केवल डिग्रियों के मानदंड पर उनको इग्नोर कर सकते हैं। डिग्रियों के प्रति मोह से ही हमारे देश में फर्जी डिग्री का कारोबार भी फल फूल रहा है। ट्यूटोरियल क्लासेस की भरमार, कोटा, इलाहाबाद सहित लगभग हर छोटे बड़े शहरों में डिग्री दिलाने की दुकानें करोड़ों का व्यवसाय कर रही हैं। ऐसे ही लोग डिग्रियों की मांग करते रहे तो हो सकता है अपने मोदी जी को कहीं इवनिंग क्लासेज जॉइन करके ग्रेजुएशन की डिग्री पूरी करनी पड़ जाये।
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