सदियों से एक जाति ही क्यों मैला उठाए?
मुकुल सरल
SKA (सफाई कर्मचारी आंदोलन) द्वारा बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की 125वीं जयंती के मौके पर निकाली गई भीम यात्रा और ‘आंदोलन’ के संयोजक बेजवाड़ा विल्सन के विचारों और सवालों से प्रेरित और सदियों से इस काम में जबरन झोंके गए दलित समाज को समर्पित।
यह कविता मुझे अभी मथ ही रही थी कि हैदराबाद में दो सफाईकर्मियों की सीवर सफाई के दौरान हुई मौत की ख़बर और तस्वीर सामने आ गई जिसने मुझे और दुख और गुस्से से भर दिया। मैं इन्हें मौत नहीं हत्याएं कहता हूं। अब यह कविता आपके हवाले कर रहा हूं। सच्ची लगे तो आगे साझा कर देना ताकि इस तरफ से आँख-कान और नाक बंद किए बैठे कथित उच्चवर्गीय सवर्ण समाज और सरकार तक भी शायद किसी जरिये से यह बात पहुंच सके कि अब यह सब बहुत दिन तक नहीं चलेगा। - मुकुल सरल
ये कैसी व्यवस्था है कोई मुझको बताए
सदियों से एक जाति ही क्यों मैला उठाए?
सदियों से एक जाति ही क्यों मैला उठाए?
सबसे ही बारी-बारी हम तो लेंगे अब हिसाब
कोई न सभा से उठे, न चेहरा छिपाए
कोई न सभा से उठे, न चेहरा छिपाए
कहते हो तुम ‘महान’ बहुत हो, मगर सुनो
एक कौम को अछूत किया शर्म न आए!
एक कौम को अछूत किया शर्म न आए!
तुम पत्थरों को पूजते, गाय को माँ कहो!
इंसान को दुत्कारते कि छू भी न जाए!
इंसान को दुत्कारते कि छू भी न जाए!
क्यों अब तलक भी सर पे रखी मल की टोकरी!
सरकार गुनाहगार है, सरकार बताए?
सरकार गुनाहगार है, सरकार बताए?
क्यों मर गए सीवर में हज़ारों-हज़ार लोग
ये क़त्ल हैं! तुमने किए, तुम देख न पाए!
ये क़त्ल हैं! तुमने किए, तुम देख न पाए!
विज्ञान से सवाल है, विज्ञानियों से भी
मैला उठे मशीन से क्यों सोच न पाए?
मैला उठे मशीन से क्यों सोच न पाए?
सीवर के लिए क्यों नहीं मशीन बन सकी
ये कैसी तरक्की है मेरे काम न आए!
ये कैसी तरक्की है मेरे काम न आए!
हाँ, डाक्टर जी बोलो तुम तो सबके देवता!
क्यों जानकर दलित हमें न हाथ लगाए
क्यों जानकर दलित हमें न हाथ लगाए
चौथा है खंभा मीडिया इसकी न कुछ कहो
कहता है कौन ‘गंदगी’ को देखे-दिखाए
कहता है कौन ‘गंदगी’ को देखे-दिखाए
आएगा कौन बस्ती में दुख-दर्द जानने
जब हाल सुनके ही उन्हें उबकाई सी आए
जब हाल सुनके ही उन्हें उबकाई सी आए
सबको ही ख़ूबसूरत तस्वीर चाहिए
अपनी ही गंदगी को तो हम देख न पाए
अपनी ही गंदगी को तो हम देख न पाए
जो ‘सुख का काम’ कहते हैं उनसे ज़रा कहो
इस ‘दिव्य सुख’ का वो भी तो कुछ लाभ उठाए
इस ‘दिव्य सुख’ का वो भी तो कुछ लाभ उठाए
एक दिन उठाके झाड़ू तुम ‘महान’ बन गए!
हम जानते हैं कौन सा फिर जाल बिछाए
हम जानते हैं कौन सा फिर जाल बिछाए
अब स्वच्छता का काम तुम्हारा है, तुम करो
हमको न कोई स्वच्छता का पाठ पढ़ाए
हमको न कोई स्वच्छता का पाठ पढ़ाए
हम तो लड़ेंगे हक़ के लिए और पढ़ेंगे भी
हमने क़लम उठा लिए हमने अलम उठाए
हमने क़लम उठा लिए हमने अलम उठाए
आज हम सबको पूछना ही होगा--इन हत्याओं का कातिल कौन..हत्यारा कौन है...
जाति की संडांध जो दिमाग में तह-दर-तह जमाए बैठी है, उसे साफ किए बिना भारत के किसी भी तरह के विकास की बात बेमानी है...ठीक वैसे ही जैसे किसानों की आत्महत्याओं के दौर में जीडीपी वृद्धि दर की चर्चा करना...
जाति की संडांध जो दिमाग में तह-दर-तह जमाए बैठी है, उसे साफ किए बिना भारत के किसी भी तरह के विकास की बात बेमानी है...ठीक वैसे ही जैसे किसानों की आत्महत्याओं के दौर में जीडीपी वृद्धि दर की चर्चा करना...
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