Tuesday, May 10, 2016

स्मरण - प्रख्यात शायर और गीतकार कैफी आजमी

स्मरण - प्रख्यात शायर और गीतकार कैफी आजमी 
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Gopal Rathi
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मशहूर उर्दू शायर कैफ़ी आज़मी के तहसीलदार पिता उन्हें आधुनिक शिक्षा देना चाहते थे। किंतु रिश्तेदारों के दबाव के कारण कैफ़ी आज़मी को इस्लाम धर्म की शिक्षा प्राप्त करने के लिए लखनऊ के 'सुलतान-उल-मदरिया' में भर्ती कराना पड़ा। लेकिन वे अधिक समय तक वहाँ नहीं रह सके। उन्होंने वहाँ यूनियन बनाई और लंबी हड़ताल करा दी। हड़ताल समाप्त होते ही कैफ़ी आज़मी को वहाँ से निकाल दिया गया। बाद में उन्होंने लखनऊ और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में शिक्षा पाई और उर्दू, अरबी और फ़ारसी भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया।
कैफ़ी आज़मी ने कहानी लेखक के रूप में फ़िल्मों में प्रवेश किया। 'यहूदी की बेटी' और 'ईद का चांद' उनकी लिखी आरंभिक फ़िल्में थीं। उन्होंने 'गरम हवा' और 'मंथन जैसी फ़िल्मों में संवाद भी लिखें। उन्होंने अनेक फ़िल्मों में गीत लिखें जिनमें कुछ प्रमुख हैं- 'काग़ज़ के फूल' 'हकीकत', हिन्दुस्तान की कसम', हंसते जख्म 'आखरी खत' और हीर रांझा'। फिल्म हीर-रांझा अकेले ही काफी है युगों-युगों तक सिने प्रेमियों के बीच कैफी आजमी को अमर करने के लिए।
1975 कैफ़ी आज़मी को आवारा सिज्दे पर साहित्य अकादमी पुरस्कार और सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड से सम्मानित किये गये।कैफ़ी आज़मी की नज़्मों और ग़ज़लों के चार संग्रह हैं- झंकार, आखिरे-शब,
आवारा सिज्दे, इब्लीस की मजिलसे शूरा।
कैफी के कुछ प्रमुख फिल्मी नगमे -----
मैं ये सोच के उसके दर से उठा था।..(हकीकत)
है कली-कली के रुख पर तेरे हुस्न का फसाना...(लालारूख)
वक्त ने किया क्या हसीं सितम... (कागज के फूल)
इक जुर्म करके हमने चाहा था मुस्कुराना... (शमा)
जीत ही लेंगे बाजी हम तुम... (शोला और शबनम)
तुम पूछते हो इश्क भला है कि नहीं है।.. (नकली नवाब)
राह बनी खुद मंजिल... (कोहरा)
सारा मोरा कजरा चुराया तूने... (दो दिल)
बहारों...मेरा जीवन भी सँवारो... (आखिरी khत)
धीरे-धीरे मचल ए दिल-ए-बेकरार... (अनुपमा)
या दिल की सुनो दुनिया वालों... (अनुपमा)
मिलो न तुम तो हम घबराए... (हीर-रांझा)
ये दुनिया ये महफिल... (हीर-रांझा)
जरा सी आहट होती है तो दिल पूछता है।.. (हकीकत)
सादर श्रद्धांजलि

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