Sunday, May 1, 2016

चलता है परदेश कमाने हाथ में थैला तान थैले में कुछ चना, चबेना, आलू और पिसान, टूटी चप्‍पल, फटा पजामा मन में कुछ अरमान ढंग की जो मिल जाये मजूरी तो मिल जाये जहान।

चलता है परदेश कमाने हाथ में थैला तान
थैले में कुछ चना, चबेना, आलू और पिसान,
टूटी चप्‍पल, फटा पजामा मन में कुछ अरमान
ढंग की जो मिल जाये मजूरी तो मिल जाये जहान।
साहब लोगों की कोठी पर कल फिर उसको जाना है
तवा नहीं है फिर भी उसको तन की भूख मिटाना है,
दो ईटों पर धरे फावड़ा रोटी सेंक रहा है
गीली लकड़ी सूखे आंसू फिर भी सेंक रहा है।
धुंआ देखकर कबरा कुत्‍ता पूंछ हिलाता आया
सोचा उसने मिलेगा टुकड़ा, डेरा पास जमाया,
मेहनतकश इंसानों का वह सालन बना रहा है,
टेढ़ी मेढ़ी बटलोई में आलू पका रहा है।
होली और दिवाली आकर उसका खून सुखाती है
घर परिवार की देख के हालत खूब रूलाई आती है,
मुन्‍ना टाफी नहीं मांगता, गुड़िया गुमसुम रहती है
साहब लोगों के पिल्‍लों को देख के मन भरमाती है।
फट गया कुरता फिर दादा का, अम्‍मा की सलवार
पता नहीं किस बात पे हो गई दोनों में तकरार,
थे अधभरे कनस्‍तर घर में थी ना ऐसी कंगाली
नहीं गयी है मुंह में उसके कल से एक निवाली।
लगता गुड़िया की मम्‍मी ने छेड़ी है कोई रार
इसी बात पर हो गई होगी दोनों में तकरार
दो ईटों पर धरे फावड़ा रोटी सेंक रहा है
गीली लकड़ी सूखे आंसू फिर भी सेंक रहा है।
रचनाकार: रामदीन लखनऊ

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