उत्तराखंड की हार के बाद निशाने पर न्यायपालिका
रावत जी,बेहतर है कि घोड़ों के दम पर जीने के बजाय विधानसभा भंग कर दें और बजरंगियों से निबटने का मौका वोटरों को दें।
जेटली ने कहा कि अदालती हस्तक्षेप से बाधित राजकाज
नागरिक और मानवाधिकार, जल जंगल जमीन, मेहनतकशों के हक हकूक के लिए न्यायपालिका आखिरी शरणस्थल है और वही निशाने पर है।समझ लीजिये कयामत अब गगन घटा गहरानी है।
पलाश विश्वास
अरुण जेटली, केंद्रीय वित्त मंत्री
माननीय हरीश रावत को विनम्र सुझाव है कि घोडों के बाजार में उत्तराखंड का दांव पर न लगायें और सदन में बहुमत जीत लेने के बाद उन्हें तुरंत विधानसभा भंग करने की सिफारिश देनी चाहिए।क्योंकि केंद्र सरकार इस हार को हजम करने वाली नहीं है और फिर तख्ता पलट का कोई न कोई रास्ता केशरिया ब्रिगेड निकाल ही लेगा।इसके मुकाबले के लिए सबसे बेहतर यही कि नये सिरे से उत्तराखंड की जनता की राय लिया जाये और संघ परिवार का मुकाबला चुनाव मैदान में किया जाये।
इसी बीच बुरी खबर यह है कि संघ परिवार को बंगाल के केसरियाकरण में भारी कामयाबी मिली है और 19 मई को धर्मोन्मादी ध्रूवीकरण की यह कामयाबी दीदी की जीत में तब्दील में बदलने के आसार हैं क्योंकि दक्षिण बंगाल में मुसलमान उनके ही साथ हैं।गठबंधन ने फिरभी खूब मुकाबला किया है।
इसी बीच सबसे बुरी खबर यह है कि बिहार और बंगाल में संघ परिवार के मुकाबले विपक्ष के इस अनिवार्य गठंधन के उत्तर प्रदेश में विस्तार होने की उम्मीद कम है क्योंकि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके पिता मुलायम सिंह यादव किसी से समझौते कि लिए अपने कुनबे के अटूट वर्चस्व को दांव पर लगाने को तैयार नहीं हैं तो उत्तराखंड में हरीश रावत की वापसी के लिए निर्णायक समर्थन देने के बाद बहन मायावती ने फिर ऐलान किया है कि वे अंकेली लड़ेंगी।अपने स्वार्थ और महत्वाकांक्षाओं की वजह से संसदीय राजनीति के रथी महारथियों की अड़चनों की वजह से शायद लोकतांत्रिक तरीके से इस निरंकुश सत्ता पर अब अंकुश असंभव है।
आगे वक्त और मुश्किल है।विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों को बंद करना के लिए देश के कोने कोने में रोहित वेमुला की संश्तागत हत्य के बाद बजरंगी अश्वमेध अभियान जारी है।
ताजा मामला इलाहाबाद विश्वविद्यालय का है जहां उपकुलपति ने मनुस्मृति के खिलाफ विद्रोह कर दी है और इससे निपटने की तैयारी जेएनयू में खुल्ला खेल फर्रूखाबादी है।
अब प्रतिरोध की छोंडे़,विरोध और असहमति की गुंजाइश भी बची नहीं है।नागरिक और मानवाधिकार हनन का अटूट सिलसिला जारी है और आदिवासियों,स्त्रियों,दलितों,पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ देश भर में चांदमारी जारी है।
नागरिक और मानवाधिकार, जल जंगल जमीन, मेहनतकशों के हक हकूक के लिए न्यायपालिका आखिरी शरणस्थल है और वही निशाने पर है।समझ लीजिये कयामत अब गगन घटा गहरानी है।
अब नियामागिरि में वेदांत के खिलाफ फैसले के मध्य उत्तरा खंड में पिछवाड़े से सरकारिया कमिशन की सिफारिशों और संविधान की धज्जियां उड़ाकर सत्ता पर डाका डालने की कोशिश अदालती हस्तक्षेप से नाकाम हो गयी तो केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सीधे न्यायपालिका पर सरकारी कामकाज में दखलअंदाजी करने का आरोप लगाया है।
उत्तराखंड मामले में न्यायपालिका के दखल देने के फौरन बाद केंद्रीय वित्त मंत्री ने न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाया है। राज्यसभा में जेटली ने कहा कि राजनीतिक समस्याओं का समाधान न्यायपालिका को नहीं करना चाहिए।
देश में जो कुछ भी सार्वजनिक है,उसका निजीकरण करने के बाद,अबाध विदेशी पूंजी निवेश के धाराप्रवाह सुधार कार्यकर्मों के मध्य नागरिकों का सबकुछ बाजार के हवाले और सारे संसाधन, समूची उत्पादन प्रणाली,सारी बुनियादी जरुरतें और सेवायें बाजार के हवाले करने के लिए सारे कायदा कानून बदलकर देश को मुक्ताबाजार में तब्दील करने वाले सत्तापक्ष के सरदर्द का सबब अगर अदालती सक्रियता और हस्तक्षेप हैं,तो समझ लीजिये कि अब न्यायपालिका का स्वयात्तता का भी विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता जैसा हाल होना चाहिए।
जेटली ने कहा है कि राजनीतिक समस्याओं का निराकरण राजनीतिक तरीके से ही होना चाहिए। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका ने कार्यपालिका और विधायिका का अतिक्रमण किया है। वित्तमंत्री ने कहा कि ऐसे में अब सरकार के पास बजट बनाना और टैक्स लेने का काम ही रह गया है। न्यायपालिका को यह काम भी ले लेना चाहिए।
विडंबना यह है कि जिस राज्यसभा की वजह से आर्थिक सुधार लंबित होने की शिकायत सत्तापक्ष को है,कारपोपरेट वकील जेटली ने बुधवार राज्यसभा में कहा कि रोज-रोज के अदालती दखल से सरकार को परेशानी हो रही है।
जेटली की मन की बातें सत्ता पक्ष के अगले कार्यक्रम का इंगित कर रहा है।उनने फरमाया है कि सरकार के सभी कामों में पिछले काफी दिनों से अदालत का दखल बढ़ गया है। जिससे राजकाज प्रभावित हुआ है।
जेटली के मुताबिक अदालती सक्रियता के मद्देनजर राजकाज बजट बनाने और टैक्स वसूलने तक सीमाबद्ध है।
राज्यसभा में चर्चा के दौरान अरुण जेटली ने सरकार का दर्द बयां करते हुए कहा कि अब लगता है कि सरकार का काम बजट तैयार करना और टैक्स वसूली करना ही रह गया है। क्योंकि बाकी कामों में किसी न किसी तरह से अदालत का दखल हो जाता है।
फिर लोकसभा में केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि राजनीतिक समस्याओं का निराकरण राजनीतिक तरीके से होना चाहिए। साथ ही वित्त मंत्री ने कहा कि कार्यपालिका और विधायिका के क्षेत्र पर न्यायपालिका ने अतिक्रमण कर लिया है।
लोकसभा में जेटली ने कहा कि ऐसा लगता है सरकार के पास अब सिर्फ बजट बनाना और टैक्स लेने का ही काम रह गया है। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि न्यायपालिका को ये भी काम ले लेना चाहिए।
उत्तराखंड में करीब 2 महीने चली सियासी उठापटक के बीच न्यायपालिका का अहम रोल रहा। केंद्र द्वारा राष्ट्रपति शासन लगाने पर न्यायपालिका ने पूरी सक्रियता दिखाते हुए फैसला लिया था।
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