सलाम, सलाम, सलाम
...सपना चमड़िया
…..........................
बिना धूप की परवाह किए
और सांवली होती हुई
विरोध में निकलने वाली
लड़कियों को सलाम ।
सुदर्शन नहीं दिखने वाले
लड़ाई की ज़िद लिये
लड़कों को सलाम।
भूख से सिकुड़ती
आंतों को सलाम
गिरते स्वास्थ्य
चमकती आंखों
को सलाम ।
इंकलाबो इंकलाब
वाले नारे को सलाम
और उन नारों पर उभरती
गले की हर एक रग को सलाम
गले से दुपट्टा फेंकने वाले
हाथों को सलाम
और बदऩजर की तरफ
उठी हुई हर तर्जनी को सलाम ।
सभा में बोले हर झूठ के
पर्दाफाश को सलाम
और सवाल पूछती हुई
हर खुली चिट्ठी को सलाम।
आधी रात को गंगा ढाबे पर
चाय पीती मेरी बेटी
की आजादी को सलाम
और लड़की को सिर्फ लड़की
की तरह देखने की
सनातनी आदत से छुटकारे
को सलाम
गुलमोहर को सलाम
और भविष्य को ताक पर
रख देने वाले
हौसलों को सलाम ।
बस्तर को बचाने की
फ्रिक को सलाम
और ना झुकने वाली
इस जवां अकड़ को सलाम ।
हिन्दू-मुस्लिम कार्ड पर
पड़ने वाले हर तमाचे
को सलाम
और सबके लिए रोटी
मांगने वाली जिद
को सलाम।
हक की बात करने
वाली हिम्मत को सलाम
इन हवाओं को सलाम
इन फिज़ाओं को सलाम
और आजादी चौक के
इन बेखौफ रातों दिन को सलाम ।
भूख की हर ऐंठन
और आंसू के हर कतरे
का हिसाब मांगने वाली
इस पढ़ाई को सलाम ।
ये सलाम सलामत रहे
ऐसी दुआ मांगने वाली हर जबां
हर इंसान को सलाम ।
पहली पंक्ति में दिखने वालों
से अंतिम पंक्ति तक की
बुलंद आवाजों को सलाम ।
…..........................
बिना धूप की परवाह किए
और सांवली होती हुई
विरोध में निकलने वाली
लड़कियों को सलाम ।
सुदर्शन नहीं दिखने वाले
लड़ाई की ज़िद लिये
लड़कों को सलाम।
भूख से सिकुड़ती
आंतों को सलाम
गिरते स्वास्थ्य
चमकती आंखों
को सलाम ।
इंकलाबो इंकलाब
वाले नारे को सलाम
और उन नारों पर उभरती
गले की हर एक रग को सलाम
गले से दुपट्टा फेंकने वाले
हाथों को सलाम
और बदऩजर की तरफ
उठी हुई हर तर्जनी को सलाम ।
सभा में बोले हर झूठ के
पर्दाफाश को सलाम
और सवाल पूछती हुई
हर खुली चिट्ठी को सलाम।
आधी रात को गंगा ढाबे पर
चाय पीती मेरी बेटी
की आजादी को सलाम
और लड़की को सिर्फ लड़की
की तरह देखने की
सनातनी आदत से छुटकारे
को सलाम
गुलमोहर को सलाम
और भविष्य को ताक पर
रख देने वाले
हौसलों को सलाम ।
बस्तर को बचाने की
फ्रिक को सलाम
और ना झुकने वाली
इस जवां अकड़ को सलाम ।
हिन्दू-मुस्लिम कार्ड पर
पड़ने वाले हर तमाचे
को सलाम
और सबके लिए रोटी
मांगने वाली जिद
को सलाम।
हक की बात करने
वाली हिम्मत को सलाम
इन हवाओं को सलाम
इन फिज़ाओं को सलाम
और आजादी चौक के
इन बेखौफ रातों दिन को सलाम ।
भूख की हर ऐंठन
और आंसू के हर कतरे
का हिसाब मांगने वाली
इस पढ़ाई को सलाम ।
ये सलाम सलामत रहे
ऐसी दुआ मांगने वाली हर जबां
हर इंसान को सलाम ।
पहली पंक्ति में दिखने वालों
से अंतिम पंक्ति तक की
बुलंद आवाजों को सलाम ।
.....सपना चमड़िया
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