Monday, May 2, 2016

आप यूनिवर्सिटी की कई डिग्रियां लेकर भी गधे हो सकते हैं ।

Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna
उज्ज्वल ऋषि , दिग्विजयी शोभन सम्राट गण
इसी राह सब गए "
प्रश्न डिग्री का नहीं , वंचना का है । आप यूनिवर्सिटी की कई डिग्रियां लेकर भी गधे हो सकते हैं । क़ानून , अर्थशास्त्र , दर्शन आदि का प्रोफेसर रह चुका एक शख़्स वर्षों से भारतीय राजनीति के रंग मंच पर कभी विदूषक , कभी भांड , कभी गधा तो कभी कटखने कुत्ते की भूमिका निभाता चला आ रहा है । 
दूसरी ओर भारतीय मनीषा के विलक्षण उद्गाता विनायक नरहरि भावे उर्फ़ विनोबा 12वीं पास नहीं किये थे । वह 12वीं की परीक्षा देने घर से मुम्बई को निकले और रस्ते से ही भाग कर कासी पँहुच गए , संस्कृत सीखने की ललक में । वहां उन्होंने एक आचार्य से पृच्छा व्यक्त की - संस्कृत कितने साल में सिखा देंगे ? आचार्य का उत्तर था - 12 वर्ष में। नामंज़ूर , विनोबा ने कहा , मैं छह महीने में ही सीख लूँगा । और सचमुच छह महीने में संस्कृत सीख कर वह गांधी के साकार जंगम विद्या पीठ में पँहुच गए । गीता समेत सभी उपनिषदों का विलक्षण भाष्य किया । कुरआन शरीफ की हिंदी टीका की । जितने साल सुब्रह्मण्यम स्वामी ने डिग्रियां बटोरने में खर्च किये , उतने साल में आद्य शंकराचार्य ब्रह्म ज्ञान आत्मसात कर , और उसे बाँट कर मर भी गए थे । दक्षिण के अप्रतिहत नेता के कामराज निरक्षर थे । उन्हें न अंग्रेजी आती थी , न हिंदी । फिर भी न केवल मद्रास सूबे के सफल मुख्य मंत्री , अपितु अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के दबंग अध्यक्ष भी रहे । अपनी दृढ संकल्प शक्ति से विश्व के धुरंधरों की बोलती बन्द कर देने वाली इंदिरा गांधी के पास भी कोई औपचारिक डिग्री नहीं थी । विधिवत रूप से वह सिर्फ कुछ दिन शान्ति निकेतन विश्वविद्यालय में रहीं । अन्यथा ठीक से कभी , कॉलेज तो क्या , स्कूल भी नहीं जा पायीं । इसका उनके पास तात्कालिक परिस्थितियों में अवकाश भी नहीं था ।
डिग्री नहीं है , तो कोई बात नहीं । सीखने की कोशिश करो । और सबसे पहले तो यह सीखो कि बात बात पर , बेवजह झूठ बोलने से जग हंसाई होती है । ज़्यादा फेंकने पर नाक जड़ से कटती है ।


फेस बुक पर इनबॉक्स और आउट बॉक्स भी मुझे निरन्तर उपालम्ब मिल रहे हैं , कि उत्तराखण्ड के जंगलों में भीषण आग लगी है , और मैं उस पर न कुछ लिख रहा हूँ , न कर रहा हूँ । अपनी स्थिति स्पष्ट कर दूँ, इसके उपरान्त किसी के इनबॉक्स प्रश्न का उत्तर नहीं दूंगा ।
1:- मैं फायर ब्रिगेड या वन विभाग का कर्मचारी नहीं हूँ।
2:- फेस बुक पर मेरे अश्रुपात करने अथवा हुंकारने से आग नहीं बुझेगी।
3:- पिछले दिनों टिहरी गया था । रस्ते में दावानल दिखा । भरसक बुझाने का यत्न किया , और सम्बंधित विभाग को फोन किया ।
4:- दावानल के लिए सरकारों की चीड़ पोषक वन नीति ज़िम्मेदार है । नार्थ ईस्ट के मिश्रित वनों में आग नहीं लगती ।
5:- आग बुझाने के लिए कल जो विमान पँहुचे हैं , मैं 20 साल से इस तकनीक को अपनाने के लिए दसियों लेख लिख चुका ।
6:- मुझे भी आराम करना होता है , जैसे कि आपको । मेरी स्थिति आपसे कोई अलग नहीं है , न मैं अतिरिक्त राष्ट्र भक्त हूँ ।
अस्तु ।

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