Majdoor Jha wrote: "........... बंगाल के संदर्भ में....... मल्टीनेशनल कंपनियों की गोद में बैठी राजनीति में वाम का जीतना आश्चर्य होता न की हारना. जो लोग बार-बार कहते कहते हैं कि जनता ने नकार दिया अथवा जनता ने चुन लिया उनपर मुझे घनघोर आश्चर्य होता है. बंगाल में वाम दल पर कहूँ तो पूरे भारत में वाम पार्टी यदि चुनावों में हारती है तो इसमें आश्चर्य की बात नहीं। हाँ अगर जीत जाती है तो जरूर आश्चर्य होनी चाहिए। जो लोग इस हार पर अपनी उँगलियों को कष्ट देते नजर आते हैं उनसे मैं पुछना चाहूँगा कि- वाम आपके अखबार, टीवी या स्टेटस में भर्त्सना के आधार के वगैर भी कभी आया है क्या? मजदूरों को 10 लाख एकड़ भूमि वितरण से लेकर अल्पसंख्यकों के लिए अलग मंत्रालय तक के प्रावधान करने वाली बंगाल की यह एकलौती पार्टी है। कभी इन बातों पर आपने चर्चा करने की कोशिश की। दलाल पूँजीपतियों से बंगाल की सुरक्षा पर कभी आपने बात की? उस 51 करोड़ के ऋण पर बातें की जो वाम सरकार ने अल्पसंख्यकों को व्यवसाय के लिए मुहैया करवाई। या उस 120 करोड़ की राशि पर बात की जो मदरसों पर खर्च किए गए। नहीं, आपने सिंगूर पर बात की. करनी भी चाहिए। लेकिन देश भर में वाम-छात्रों से लेकर कार्यकर्ताओं तक को मारा गया उस पर तो चर्चा नहीं की. यह भी ध्यान रहे कि गोधरा या मुजफ्फरनगर के हादसों के मालिक की भांति वाम ने सिंगूर मसले पर वही तेवर नहीं दिखाया जो मोदी साहब दंगों के बाद दिखाते रहे। आपने ममता दीदी के आतंक पर भी चर्चा नहीं की। धन, धर्म और सत्ता का खेल चलता रहा पर आपकी जुबान खामोश रही। कोई बात नहीं... अब रही बात कि जनता ने अस्वीकार कर दिया तो मैं पुछना चाहता हूँ किस जनता की आप बात कर रहे हैं जिसे आपने जनता कभी बनने ही नहीं दिया। एक कवि की पंक्ति याद आ रही है----- राजा ने कहा रात है, सबने कहा रात है, ये सुबह सुबह की बात है.... जब चुनावों में आपके सामंती मूल्य कायम थे तब क्या जबरन वोट नहीं दिलवाए जाते थे? फिर जब मानते हैं कि उत्तर-पूंजीवाद में शोषण के तरीके बदले हैं तो क्या इन नए रास्तों का प्रयोग चुनावों में खासकर जो संगठनें पूंजी-विरोधी है उनके खिलाफ नहीं किया जा रहा होगा? और जिन मूल्यों के जीतने पर आप उछल रहे हैं वे वही तो हैं कि देश भर के लोगों को अनाज मुकम्मल नहीं है और आप हर शहर को न्यूयॉर्क बनाने की ठाने घूम रहे हैं.... क्या वाहियात मज़ाक है। वाम-मूल्यों को चुनाव से आंकना जल्दबाज़ी होगा. बदलाव यदि सच है तो खुद सोच के देख लीजिये कि क्या भूखमरी जनता के लिए वाम के अलावा कोई विकल्प आज भी है? तैयार रहिए वक्त लगेगा पर वक्त बदलेगा जरूर......"
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