Uday Prakash
मालिक आप नाहक नाराज़ हैं
मालिक, आखिर हवा तो आपके कहने से नहीं चलती
धूप का क्या करेंगे आप जो गिरेगी ही
आपकी बरौनियों पर
आपके ऊपर चढ़ कर खेलेंगी ही रोशनी की नटखट गिलहरियाँ
रंगों पर बस तो नहीं है आपका
आप जब भी निहारेंगे
वे खिल खिलाएंगे आपके खून में
छुपा-छुपी खेलने लगेंगे
घुस कर
इन सबको मना तो नहीं कर सकते आप
मैं ठीक कह रहा हूँ मालिक,
भूल जाइये बिलकुल उन चीज़ों को
जिन पर हुक्म नहीं चलता आपका
आखिर हवा किसनिया कहारिन तो है नहीं मालिक ,
जो कराहती हुई
चौका-बासन करे आपका
बाल्टी भर-भर पानी छत तक चढ़ाए ,
दो घंटे छोटे बाबू को बहलाए
और फिर आपका बिछौना बिछाए
No comments:
Post a Comment