Sunday, May 1, 2016

आज हिन्दी सिनेंमा के सर्वांधिक भावप्रवण अभिनेता बलराज साहनी की 103 वीं जयंती है। वह अपनी 'दो बीघा ज़मीन' फ़िल्म में ज़मीन गंवा चुके मज़दूर से बने रिक्शा चालक की भूमिका में नज़र आए तो कहीं से नहीं महसूस हुआ कि कोलकाता की सड़कों पर रिक्शा खींच रहा रिक्शा चालक शंभु नहीं बल्कि कोई स्थापित अभिनेता है। यही उनकी विशेषता थी कि कोई भी चरित्र उनकी श्रेष्ठता से अछूता नहीं रहता थ। काबुली वाला', 'लाजवंती', 'हक़ीक़त', 'धरती के लाल', 'गर्म हवा', 'वक़्त', 'दो रास्ते' दो बीघा ज़मीन, हमलोग, सीमा, कठपुतली, सोने की चिडिया, घर संसार, सट्टा बाज़ार, भाभी की चूड़ियाँ, एक फूल दो माली, मेरे हमसफर जैसी उनकी किसी भी फ़िल्म में महसूस किया जा सकता है कि वे कितने बड़े कलाकार थे। तीन वर्ष पहले इस महान कलाकार की जन्मशती थी, जो बिन किसी आहट के गुज़र गई और इस साल भी इस महान कलाकार के जन्मदिवस पर सिने जगत में छाई निस्तब्धता कोइ आश्वस्ति नहीँ देतीं कि भविष्य मे हम अपने महान फिल्मकारों को सहेजकर रख पाएँगे। बलराज साहनी के महान फ़िल्मी योगदान पर उन्हेँ नमन।

आज हिन्दी सिनेंमा के सर्वांधिक भावप्रवण अभिनेता बलराज साहनी की 103 वीं जयंती है। वह अपनी 'दो बीघा ज़मीन' फ़िल्म में ज़मीन गंवा चुके मज़दूर से बने रिक्शा चालक की भूमिका में नज़र आए तो कहीं से नहीं महसूस हुआ कि कोलकाता की सड़कों पर रिक्शा खींच रहा रिक्शा चालक शंभु नहीं बल्कि कोई स्थापित अभिनेता है। यही उनकी विशेषता थी कि कोई भी चरित्र उनकी श्रेष्ठता से अछूता नहीं रहता थ। काबुली वाला', 'लाजवंती', 'हक़ीक़त', 'धरती के लाल', 'गर्म हवा', 'वक़्त', 'दो रास्ते' दो बीघा ज़मीन, हमलोग, सीमा, कठपुतली, सोने की चिडिया, घर संसार, सट्टा बाज़ार, भाभी की चूड़ियाँ, एक फूल दो माली, मेरे हमसफर जैसी उनकी किसी भी फ़िल्म में महसूस किया जा सकता है कि वे कितने बड़े कलाकार थे। तीन वर्ष पहले इस महान कलाकार की जन्मशती थी, जो बिन किसी आहट के गुज़र गई और इस साल भी इस महान कलाकार के जन्मदिवस पर सिने जगत में छाई निस्तब्धता कोइ आश्वस्ति नहीँ देतीं कि भविष्य मे हम अपने महान फिल्मकारों को सहेजकर रख पाएँगे। बलराज साहनी के महान फ़िल्मी योगदान पर उन्हेँ नमन।

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