Monday, May 2, 2016

डॉ अंबेडकर होते तो खुश होते. उनके हिसाब से जेएनयू ने 50 साल से कम वक्त में ही काफी तरक्की कर ली है. ऐसी तस्वीरें देश के कोने-कोने से आनी चाहिए. मुमकिन है आज के 100 साल बाद का भारत ऐसा ही हो पर हम चाहेंगे कि ये वक्त पहले ही आए ताकि हम भी देख लें.

साहचर्य की इतनी सुंदर तस्वीर जेएनयू की ही हो सकती है. संघर्ष का इतना संवेदनशील आख्यान जेएनयू में ही रचा जा सकता है. बदलाव के लिए जूझने वालों का इतना शानदार सिलसिला जेएनयू में ही मिल सकता है.
डॉ अंबेडकर होते तो खुश होते. उनके हिसाब से जेएनयू ने 50 साल से कम वक्त में ही काफी तरक्की कर ली है.
ऐसी तस्वीरें देश के कोने-कोने से आनी चाहिए. मुमकिन है आज के 100 साल बाद का भारत ऐसा ही हो पर हम चाहेंगे कि ये वक्त पहले ही आए ताकि हम भी देख लें.
'निर्भया' के इस मुल्क में लड़के-लड़कियों को एक दूसरे के प्रति इतना सहज और निश्चिंत और कहां देखा है आपने ? इसीलिए कहता हूं देश को एक नहीं 1000 जेएनयू चाहिए. जेएनयू को हमारी कम, हमें जेएनयू की ज्यादा जरूरत है.
तस्वीर - Sucheta De की वॉल से.

No comments:

Post a Comment