Sunday, May 1, 2016

मजदूर दिवस के अवसर पर प्रगतिशील कवि शमशेर बहादुर सिंह की कविता " य' शाम है " प्रस्तुत है । इस कविता के बारे में शमशेर कहते हैं कि यह" ग्वालियर की एक खूनी शाम का भाव- चित्र । लाल झंडे, जिन पर रोटियां टंगी हैं , लिए हुए मजदूरों का जुलूस । उनको रोटियों के बदले मानव- शोषक शैतानों ने ---- ग्वालियर की सामंती रियासत सरकार ने -- गोलियां खिलाईं । उसी दिन -१२फरवरी ,१९४४-- की एक स्वर -स्मृति । "

य" शाम
-- शमशेर बहादुर सिंह
मजदूर दिवस के अवसर पर प्रगतिशील कवि शमशेर बहादुर सिंह की कविता " य' शाम है " प्रस्तुत है । इस कविता के बारे में शमशेर कहते हैं कि यह" ग्वालियर की एक खूनी शाम का भाव- चित्र । लाल झंडे, जिन पर रोटियां टंगी हैं , लिए हुए मजदूरों का जुलूस । उनको रोटियों के बदले मानव- शोषक शैतानों ने ---- ग्वालियर की सामंती रियासत सरकार ने -- गोलियां खिलाईं । उसी दिन -१२फरवरी ,१९४४-- की एक स्वर -स्मृति । "
य' शाम है
कि आसमान खेत है पके हुए अनाज का ।
लपक उठीं लहू -भरी दराँतियां ,
--- कि आग है ः
धुआँ - धुआँ
सुलग रहा
ग्वालियर के मजूर का हृदय ।
कराहती धरा
कि हाय - मय विषाक्त वायु
धूम्र तिक्त आज
रिक्त आज
सोखती हृदय
ग्वालियर के मजूर का ।
गरीब के हृदय
टँगे हुए
कि रोटियाँ लिए हुए निशान
लाल- लाल
जा रहे
कि चल रहा
लहू भरे ग्वालियर के बजार में जुलूस ः
जल रहा
धुआँ - धुआँ
ग्वालियर के मजूर का हृदय ।
(१९४४)

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