टूटी नही है प्रतिबद्धता
-------------------------------
समय के कालचक्र में रहकर भी
टूटी नही है
कवि की प्रतिबद्धता
हौसला बुलंद है अब भी
बूढ़े बरगद की तरह
-------------------------------
समय के कालचक्र में रहकर भी
टूटी नही है
कवि की प्रतिबद्धता
हौसला बुलंद है अब भी
बूढ़े बरगद की तरह
नई कोपलें फूटने लगी है फिर से
उम्मीदें जगाने के लिए
उन टूट चुके लोगों में ...
कमजोर पड़ती क्रांति
फिर बुलंद होती है
उम्मीदें जगाने के लिए
उन टूट चुके लोगों में ...
कमजोर पड़ती क्रांति
फिर बुलंद होती है
कवि भूल नही पाता
अपना कर्म
कूद पड़ता है फिर से
संघर्ष की रणभूमि पर
योद्धा बनकर
अपना कर्म
कूद पड़ता है फिर से
संघर्ष की रणभूमि पर
योद्धा बनकर
तिमिर में भी लड़ता एक दीया
तूफान को ललकारता
लहरों से कहता -
आओ छुओ मुझे
या बहाकर ले जाओ
हम भी तो देखें
हिम्मत तुम्हारी ....
तूफान को ललकारता
लहरों से कहता -
आओ छुओ मुझे
या बहाकर ले जाओ
हम भी तो देखें
हिम्मत तुम्हारी ....
-नित्यानंद गायेन
No comments:
Post a Comment