Thursday, May 5, 2016

हमारा सवाल था- “हम ले के रहेंगे आजादी/ मनुवाद से आजादी/संघवाद से आजादी” नारे लगाते कन्हैया कुमार की जेल से लौटने के बाद जेएनयू की तस्वीर और पटना में राजद मुखिया लालू प्रसाद यादव के सामने नतमस्तक होकर बंच ऑफ थॉट्स ग्रहण करते कन्हैया कुमार की तस्वीरों के बीच का अंतर आप कैसे देखते हैं ?” इस कड़ी में हमने अपने साथी राजीव यादव का लेख इतने भी भोले न बनो कन्हैया, कमंडल का विस्तार था मंडल

हमारा सवाल था- “हम ले के रहेंगे आजादी/ मनुवाद से आजादी/संघवाद से आजादी” नारे लगाते कन्हैया कुमार की जेल से लौटने के बाद जेएनयू की तस्वीर और पटना में राजद मुखिया लालू प्रसाद यादव के सामने नतमस्तक होकर बंच ऑफ थॉट्स ग्रहण करते कन्हैया कुमार की तस्वीरों के बीच का अंतर आप कैसे देखते हैं ?”
इस कड़ी में हमने अपने साथी राजीव यादव का लेख
इतने भी भोले न बनो कन्हैया, कमंडल का विस्तार था मंडल
प्रकाशित किया था। लेख काफी पढ़ा गया और सोशल मीडिया पर काफी बहस चली।
हमारा मानना है कि साम्प्रदायिकता से लड़ाई एक महत्वपूर्ण और निर्णायक दौर में पहुँच गई है। इस लड़ाई को फौरी मुद्दों के आधार पर संबोधित नहीं किया जा सकता। अपने साथियो और विरोधियों दोनों की निर्मम आलोचना करनी पड़ेगी। सामाजिक न्याय भी उतना ही महत्वपूर्ण प्रश्न है जितना साम्प्रदायिकता या धर्मनिरपेक्षता।
हम सवाल करना चाहते हैं कि क्या सामाजिक न्याय की तथाकथित ताकतों ने इसके लिए ईमानदारी से काम किया ?
क्या सामाजिक न्याय की तथाकथित ताकतों ने वाकई सामाजिक न्याय कर सभी को हिस्सेदारी दी ?
जब सामाजिक न्याय के तथाकथित मठाधीश चिंतकों की नज़र में साम्प्रदायिकता या धर्मनिरपेक्षता सवर्ण हिन्दू और सवर्ण मुसलमान की ही समस्या है तब सामाजिक न्याय का सवाल बेमानी साबित हो जाता है। साम्प्रदायिकता या धर्मनिरपेक्षता का सवाल सिर्फ सवर्ण हिन्दू और सवर्ण मुसलमान की समस्या नहीं है। और अगर यह सिर्फ सवर्ण हिन्दू और सवर्ण मुसलमान की समस्या है तब इस सामाजिक न्याय में अल्पसंख्यकों का क्या काम है, सिर्फ लालू नितीश को वोट देना ?
हम अपने सवाल पर बहस आगे बढ़ा रहे हैं-
भागलपुर सांप्रदायिक हिंसा के पच्चीस साल पर शरद जायसवाल के द्वारा एक रिपोर्ट हाल ही में तैयार की गयी है, जो “भागलपुर : राष्ट्रीय शर्म के 25 साल” शीर्षक से पुस्तक के रूप में मीडिया स्टडीज़ ग्रुप ने प्रकाशित किया है। यह लेख इस रिपोर्ट के लिए लिखी गयी भूमिका का संपादित अंश है, जो लालू-नितीश कुमार की सामाजिक न्याय की राजनीति की भागलपुर साम्प्रदायिक हिंसा के पीड़ितों को इंसाफ दिलाने में क्या भूमिका रही, की गहराई से पड़ताल करते हुए अहम सवाल उठाती है।
लेख पढ़ेंइस लिंक पर
http://www.hastakshep.com/…/hindutva-and-the-deceptiveness-…

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