"फ्री सेक्स" :
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Samajik Yayavar Vivek Umrao
May 24 at 9:28am
फ्री का मतलब मुफत में मिलने वाली चीज। यही मतलब होता है 'फ्री' का भारतीय आम जनमानस में। यह भी एक बड़ी वजह है "फ्री सेक्स" का विरोध करने की।
'फ्री सेक्स' की कल्पना यह होती है कि कोई लड़की सड़क पर चल रही है किसी लड़के का मन हुआ तो वहीं सड़क पर लड़की को लिटा पर अधोवस्त्र ऊपर सरका कर चालू हो गया संभोग करने में। दो तीन लड़के वहीं से गुजर रहे हों उनका भी मन हुआ तो वे भी चालू हो गए।
पत्नी घर में किसी को भी बुला कर संभोग करने लगे, बिचारा पति अपनी बारी का इंतजार करता रह जाए।
बेटी जब मन करे जिसके साथ घर आकर माता पिता के सामने ही रति क्रिया करने लगे।
बहन अपने बड़े भाई के साथ कहीं जा रही है तभी उसे कोई सुंदर लड़का दिख गया, बस तुरंत बहन अपने अधोवस्त्र उठाकर चालू हो गई।
खुल कर कहा जाए या न कहा जाए लेकिन फ्री सेक्स का मोटा मोटा मतलब यही सब समझा जाता है। संस्कारी लोग सड़क पर चल रहे हैं और फ्री सेक्स में बिलीव करने वाले कुछ लड़के लड़कियां सड़क पर ही सेक्स कर रहे हैं। सोचिये क्या स्थिति होगी।
दरअसल "फ्री सेक्स" के बारे में जैसी समझ है, जैसी कल्पना है वैसा ही उसका विरोध। चूंकि समझ ऊटपटांग है इसलिए विरोध ऊटपटांग है, विरोध के तर्क के ऊटपटांग है।
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स्त्री को सेक्स करने की वस्तु, औजार व मशीन मानने की सोच, मानसिकता व परंपरा ही "फ्री सेक्स" को समझने नहीं देती। नहीं समझने देती कि "फ्री सेक्स" का मतलब शारीरिक यौन क्रिया नहीं होता।
लेकिन जहां स्त्री को 'नर्क का द्वार' कहा जाता हो,
जहां ब्रह्मचारी माने जाने वाले भगवानों के मंदिरों में स्त्री का प्रवेश वर्जित हो जबकि वह भगवान ब्रह्मचारी माना जाता हो,
जहां घर के अंदर अपने ही बड़े बुजुर्गों से शरीर को छुपाकर, ढककर रखते हुए सुरक्षित रहने की घूंघट जैसी परंपराएं हों,
जहां पत्थर की मूर्तियों के भगवानों के साथ सेक्स करने के लिए स्त्री दासियां नियुक्त की जाती रही हों,
आदि आदि।
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ऐसे समाजों में यदि यह कहा जाए कि 'सेक्स' का मतलब 'यौन क्रिया' ही न होकर 'लिंग' भी होता है।
वहां "फ्री सेक्स" का मतलब 'लिंग भेद' के आधार पर 'रेसिज्म' को समाप्त करके "स्त्री स्वातंत्र्य" होता है तो कितने लोग समझ पाएंगें आखिरकार।
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सामाजिक यायावर
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Samajik Yayavar Vivek Umrao
May 24 at 9:28am
फ्री का मतलब मुफत में मिलने वाली चीज। यही मतलब होता है 'फ्री' का भारतीय आम जनमानस में। यह भी एक बड़ी वजह है "फ्री सेक्स" का विरोध करने की।
'फ्री सेक्स' की कल्पना यह होती है कि कोई लड़की सड़क पर चल रही है किसी लड़के का मन हुआ तो वहीं सड़क पर लड़की को लिटा पर अधोवस्त्र ऊपर सरका कर चालू हो गया संभोग करने में। दो तीन लड़के वहीं से गुजर रहे हों उनका भी मन हुआ तो वे भी चालू हो गए।
पत्नी घर में किसी को भी बुला कर संभोग करने लगे, बिचारा पति अपनी बारी का इंतजार करता रह जाए।
बेटी जब मन करे जिसके साथ घर आकर माता पिता के सामने ही रति क्रिया करने लगे।
बहन अपने बड़े भाई के साथ कहीं जा रही है तभी उसे कोई सुंदर लड़का दिख गया, बस तुरंत बहन अपने अधोवस्त्र उठाकर चालू हो गई।
खुल कर कहा जाए या न कहा जाए लेकिन फ्री सेक्स का मोटा मोटा मतलब यही सब समझा जाता है। संस्कारी लोग सड़क पर चल रहे हैं और फ्री सेक्स में बिलीव करने वाले कुछ लड़के लड़कियां सड़क पर ही सेक्स कर रहे हैं। सोचिये क्या स्थिति होगी।
दरअसल "फ्री सेक्स" के बारे में जैसी समझ है, जैसी कल्पना है वैसा ही उसका विरोध। चूंकि समझ ऊटपटांग है इसलिए विरोध ऊटपटांग है, विरोध के तर्क के ऊटपटांग है।
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स्त्री को सेक्स करने की वस्तु, औजार व मशीन मानने की सोच, मानसिकता व परंपरा ही "फ्री सेक्स" को समझने नहीं देती। नहीं समझने देती कि "फ्री सेक्स" का मतलब शारीरिक यौन क्रिया नहीं होता।
लेकिन जहां स्त्री को 'नर्क का द्वार' कहा जाता हो,
जहां ब्रह्मचारी माने जाने वाले भगवानों के मंदिरों में स्त्री का प्रवेश वर्जित हो जबकि वह भगवान ब्रह्मचारी माना जाता हो,
जहां घर के अंदर अपने ही बड़े बुजुर्गों से शरीर को छुपाकर, ढककर रखते हुए सुरक्षित रहने की घूंघट जैसी परंपराएं हों,
जहां पत्थर की मूर्तियों के भगवानों के साथ सेक्स करने के लिए स्त्री दासियां नियुक्त की जाती रही हों,
आदि आदि।
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ऐसे समाजों में यदि यह कहा जाए कि 'सेक्स' का मतलब 'यौन क्रिया' ही न होकर 'लिंग' भी होता है।
वहां "फ्री सेक्स" का मतलब 'लिंग भेद' के आधार पर 'रेसिज्म' को समाप्त करके "स्त्री स्वातंत्र्य" होता है तो कितने लोग समझ पाएंगें आखिरकार।
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सामाजिक यायावर
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