Mithilesh Priyadarshy
जब दिन भर खुले में गर्म हवाएं मौत की तरह नाचती हों, उनके बीच सिर्फ पानी पर जीना सचमुच बहुत कठिन है. जब रोज़ के ख़ुराक की अभ्यस्त भूखी अंतड़ियां एक-दूसरे को ही खा डालने के लिए टूट पड़ रही हों, उन्हें लड़ने की जरूरतें समझाना सचमुच बहुत कठिन है. जब प्रशासन हत्यारों की चालें अपना चुका हो, उसे सही-ग़लत का फ़र्क बताना सचमुच बहुत कठिन है. जब विश्वविद्यालय स्तर की लड़ाइयों में सरकार की भूमिका का गाढ़ा मिश्रण घुला हो, उन लड़ाइयों को विश्वविद्यालय स्तर से ही लड़ कर जीत लेने की उम्मीद करना सचमुच बहुत कठिन है.
पर सबकुछ कठिन होने के बावज़ूद भूख हड़ताल पर बैठे साथी हैं कि 'जैक लंडन' की कहानियों के पात्र हो गए हैं, जहाँ असीम जिजीविषा है, ऊर्जा है, उम्मीद है, यक़ीन है कि लड़ेंगे और जीतेंगे.
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