Monday, May 2, 2016

ऐतिहासिक तथ्य यह है कि गंगा की अन्तरवेदी में नाग जाति का राज्य था. समुद्रगुप्त ने इनका उन्मूलित कर दिया और वे पहाड़ों की ओर भागे. इनमें से एक नाग प्रमुख गणपति नाग ने गोपस्थल या गोपेशवर को अपनी राजधानी बनाया

TaraChandra Tripathi
बचपन में अंधेरा होने के बाद जब गाँव में कही जाना पड़्ता था तो दादी का निर्देश था कि चलते हुए आस्तीक- आस्तीक बोलते रहना चाहिए. इस से साँप का भय नहीं रहता. तब न कारण पूछा, बस सापों के भय से अनुपालन करते रहे. अब जब हिन्दी टीका सहित महाभारत में ताक-झाँक की तो पता चला कि जन्मेजय के नाग यज्ञ में जब एक के बाद एक सहस्रों नागों की आहुति दी जाने लगी और शेषनाग की भी बारी आने लगी तो वह अपनी बहिन जरत्कारु के पास गया और उसे बताया कि ब्रह्मा के आशीर्वाद से उसका बेटा आस्तीक ही इस यज्ञ को रोक सकता है. आस्तीक ने जन्मेजय को अपनी विद्वता से प्रभावित कर इस यज्ञ को रुकवा दिया. शेषनाग ने उसे वर दिया कि जो भी रोज एक बार यो "जरत्कारु जातो जरत्कारु महायश: आस्तीक: सर्पसत्राय वह पन्नगान योभ्यरक्षत: ताम स्मरन्ताम महाभाग न मामहिन्सितुमर्हत:" इस मंत्र को जपेगा उसे सर्प्भय नहीं होगा. मंत्र तो बहुतों को मालूम नहीं था. इस लिए आस्तीक- आस्तीक पुकार कर सापों के उनसे दूर रहने का भरोसा करते थे.
ऐतिहासिक तथ्य यह है कि गंगा की अन्तरवेदी में नाग जाति का राज्य था. समुद्रगुप्त ने इनका उन्मूलित कर दिया और वे पहाड़ों की ओर भागे. इनमें से एक नाग प्रमुख गणपति नाग ने गोपस्थल या गोपेशवर को अपनी राजधानी बनाया. और उत्तराखंड में अलकनन्दा के उत्तरवर्ती भाग पर अधिकार कर लिया. आज भी उस क्षेत्र में नाग राजाओं की पूजा होती है. ्बेरीनाग, धौली नाग, नागधार पोखरी, जैसे अनेक नाम इस क्षेत्र में नाग जाति की अवस्थिति की सूचक हैं.

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